शिमला,7 मार्च: औरत, स्त्री और महिला ऐसे शब्द हैं जिनका जिक्र आते ही ममता,स्नेह,कोमलता,त्याग और प्रेम की तस्वीर आंखों में स्वत: ही उभर आती है। महिलाएं जितनी सुकोमल है,उतनी ही मजबूत और सशक्त भी हैं। आज महिलाएं समाज में पुरुषों के बराबर दर्जा हासिल कर चुकी है और हर परिस्थिति का सामना कर रही है। ऐसी महिलाओं की कहानियों से इतिहास से भरा पड़ा है जिन्होंने अपने दम पर अपना नाम सभी की जबान पर ला कर रख दिया लेकिन कुछ कहानियां ऐसी भी हैं जो कठिन संघर्ष से लिखी गई हैं पर जिन्हें लोग जानते नहीं या ध्यान नहीं देते हैं। ऐसी ही कहानी है ऊना जिले की रहने वाली नीलम शर्मा की। आज अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर नीलम के संघर्ष की कहानी नेशनल वॉचर आपके साथ सांझा कर रहा है।
महिलाओं के सम्मान में भी कोई विशेष दिन है ये बात उच्च पदों पर पहुंची आईएएस महिलाएं, सिनेमा की दुनिया या अन्य क्षेत्रों में नाम कमाने वाली पढ़ी-लिखीं सभी महिलाएं जानती है यहां तक कि गृहणियां भी इस दिन से परिचित हैं लेकिन अब भी कुछ महिलाएं ऐसी हैं जो अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के बारे में नहीं जानती। वे अगर कुछ जानती हैं तो बस मेहनत करना। हमारी महिला दिवस की नायिका भी कुछ ऐसी ही हैं जिन्हें इस दिवस से कुछ लेना-देना नहीं। 45 वर्षीय नीलम शर्मा मूलतः ऊना जिला की रहने वाली हैं लेकिन पिछले कई सालों से अपने परिवार के साथ शिमला में ही रह रही हैं। उनके तीन बेटे हैं और वह शिमला के कमला नेहरू अस्पताल के समीप किराए के मकान में रहती हैं। नीलम की यहीं एक खाने की छोटी सी दुकान है। उनके बनाए खाने के मुरीद अस्पताल के डॉक्टर्स,नर्सेज,तीमारदार यहां तक कि मरीज भी हैं। इसके अलावा आसपास के क्षेत्र के लोग व राहगीर भी उनके हाथ के स्वाद के कायल हैं। नीलम का यह सफर कोई आसान नहीं रहा। नीलम से बात करने पर उन्होंने बताया कि एक समय ऐसा था जब उन्हें आर्थिक तंगी से गुजरना पड़ रहा था। उनकी स्तिथि इतनी बदहाल थी कि उन्हें एक समय भी ठीक से खाना नहीं मिल पाता था। सुबह के बाद उन्हें रात के भोजन की चिंता सताने लग पड़ती थी।
नीलम बताती हैं कि उनके पति रामलाल शर्मा केटरिंग का काम करते थे लेकिन उतनी आय नहीं थी कि परिवार का गुजरबसर और तीनों बच्चों की पढ़ाई का खर्च अच्छे से निकल पाता। उन्होंने अपने पति का हाथ बढ़ाने के लिए 14 साल पहले मक्की बेचने का काम इसी जगह से शुरू किया था। वे दिन में विकासनगर में बिन मां के बच्चों की देखभाल का काम करती थी और शाम को फिर अस्पताल के समीप मक्की भून कर बेचती थी तब जाकर शाम के भोजन का इंतजाम होता था। उसके बाद उन्होंने मोमोज बेचना शुरू किया। नीलम बताती हैं कि उन्हें इस काम में बहुत सारी परेशानियों का सामना करना पड़ा। उनके प्रतिद्वंद्वी उनके काम से ईर्ष्या करने लगे। वे लोग उनका सामान फेंक दिया करते थे कभी उनकी शिकायत लगा दिया करते थे। कई बार उनका सामान उठा कर ले गए साथ ही उनको व उनके बच्चों को भी धमकाना शुरू कर दिया। नीलम कहती हैं कि वे कभी डरी नहीं न ही उन्होंने हार मानी। उन्होंने अपने प्रतिद्वंदियों का हिम्मत से सामना किया।
नीलम बताती हैं कि एक वक्त ऐसा आया जब उनके घर में आटा नहीं था और उनके प्रतिद्वंदी ने उनका सामान फेंक दिया था तब उन्होंने आधा किलो बेसन,1 किलो मैदा और तेल का पैकेट खरीद कर घर से कढ़ाई लाकर पकौड़े बनाकर बेचे। वे कहती हैं कि परेशानियों का लंबा सफर तयकर वे आज मेहनत से यहां तक पहुंची हैं। अपने पति की आर्थिक सहायता करने वाली नीलम का बनाया खाना आज अस्पताल के साथ-साथ कई लोगों की पसंद बन चुका है। महिला दिवस पर संदेश देते हुए वे कहती हैं कि अगर मन में चाहत हो तो महिलाएं सब कुछ कर सकती हैं। कोई भी काम ऐसा नहीं जो महिलाएं नहीं कर सकती हैं।
आज नीलम के साथ उनका बेटा शिव व उनके पति उनकी खाना बनाने व अपने ग्राहकों को खाना खिलाने में सहायता कर रहे हैं। वे खाने से लेकर समोसे ,पकौड़े ,मटर और जलेबी भी बनाती हैं। सर्दियों के मौसम में सरसों का साग मक्की की रोटी भी बनाती हैं साथ ही छोले भटूरे भी बनाती हैं जो उनके ग्राहकों को खूब पसंद हैं।
सभी महिलाओं को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस की शुभकामनाएं।